विविधरंगी दोहे
रतनारे लोचन सजल, हृदय अनकही पीर।
बिन प्रियतम लू सम लगे, शीतल मंद समीर।।
बिन प्रियतम लू सम लगे, शीतल मंद समीर।।
नैन छबीले बावरे, साजन बिन बेचैन।
सुधि आवत भीगत हिया, बरसत हैं दिन रैन।।
सुधि आवत भीगत हिया, बरसत हैं दिन रैन।।
नेह पगी रस से भरी, बतियाँ रतियाँ मौन।
साजन रूठे री सखी, उत्तर देगा कौन।।
साजन रूठे री सखी, उत्तर देगा कौन।।
अलसायी कलियाँ खिलीं, मुस्काए तरु पात।
खुशियाँ लेकर आ गया, फिर से नवल प्रभात।।
खुशियाँ लेकर आ गया, फिर से नवल प्रभात।।
भंवरों का गुंजन सुनो, या झरने की तान।
ईश्वर के सामीप्य सा, सुंदर सुखद विहान।।
ईश्वर के सामीप्य सा, सुंदर सुखद विहान।।
माया के बाज़ार में, बहुरंगी हर चीज।
यूं भटका मन बावरा, ज्यों ऊसर में बीज।।
यूं भटका मन बावरा, ज्यों ऊसर में बीज।।
रचनाकार- पुष्पेन्द्र यादव
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