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बसाओ प्यार की बस्ती....





बसाओ प्यार की बस्ती, मिलाकर दिल रहो यारों
किसी के वासते जी लो, किसी पर मर मिटो यारों।
मिला मुश्किल स' जीवन ये, नहीं ज़ाया करो इसको
खिलाओ फूल ख़ुशियों के, ख़ुशी से तुम जियो यारों ।
बड़ी दुनिया सुहानी ग़र ज़माने में मुहौब्बत है
जले दिल आदमी का अब नहीं ऐसा करो यारों।
पुकारो प्यार से मुझको, जहाँ तुम हो वहीं मैं हूँ
भरोसा तुम करो मेरा, भरोसा जीत लो यारों।
मुझे तो सख़्त नफ़रत है, जहाँ मजबूर दिल टूटे
कहे निर्दोष जामे इश्क़ सब मिल के पियो यारों।




रचना- निर्दोष दीक्षित 
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काव्य विधा- ग़ज़ल
बहर- बहरे हज़ज़
वज़्न-1222,1222, 1222, 1222
अरक़ान- मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन

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