एक पल की हार
'ज़िन्दग़ी' कि कोई निश्चित परिभाषा नही,
बल्कि यह तो एक शब्द की विस्तृत व्याख़्या है
बल्कि यह तो एक शब्द की विस्तृत व्याख़्या है
इंसान
कल का जीवन आज मे जीता है,
और ख़त्म हो जाता है फ़िर कल
अंततः जीत जाता है मौत का ,
सिर्फ़ एक पल
कल का जीवन आज मे जीता है,
और ख़त्म हो जाता है फ़िर कल
अंततः जीत जाता है मौत का ,
सिर्फ़ एक पल
ज़िन्दग़ी अपने अनंत रूप दिखाती है,
किंतु अंत मे,
पलभर की मृत्यु से
हार जाती है ।।
किंतु अंत मे,
पलभर की मृत्यु से
हार जाती है ।।
(सुधांशु श्रीवास्तव)
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