सर्द रात
रात गहराती जा रही थी,सर्दी पूरे शबाब पर थी। प्लेटफार्म के जनरल वेटिंग रूम के सबसे अंतिम छोर पर कोने में पड़े बूढ़े कुली दीनू के पैर सिकुड़ते हुए सीने तक आ चुके थे। हाथ जितने ठंडे थे, कलेजा उतना ही गरम।
दिन भर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद हासिल किये दो सौ रुपये भी आज किसी ने चोरी कर लिये थे। उसने थैली दोबारा टटोली, वही ढ़ाक के तीन पात।
किसने की होगी चोरी...रहमान ने जो दिन भर मुसाफिरों की जेबें काटता रहता है या फिर मालती ने जो हमेशा अपने बच्चे की बीमारी का बहाना करके लोगों की संवेदनाएं पैसों के रूप में बटोरती है।
कितने हृदयहीन होते हैं ये चोर भी..मुझ गरीब को भी नहीं छोड़ा। चोरी ही करना है तो कहीं भी करते। सुना है देश में बहुत काला धन है..अजीब बात है धन भी काला होता है..मगर उसके मालिकों के चेहरे अक्सर काले नहीं होते।
अचानक ठण्डी हवा के एक झोंके ने उसकी तन्द्रा भंग कर दी...और दीनू सामने बेंच पर बैठे चाय पीते यात्रियों को देखने लगा जो इस भयावह सर्दी से बचने की असफल चेष्टा कर रहे थे।
- पुष्पेन्द्र यादव
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