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औरत का हिस्सा

औरत जाँत पर रखा दाना है
पिसती है लगातार पिसती है
घुटती है लगातार घुटती है
अपनी सारी ताकत लगा देती है
जाँत से बाहर आने को
पर अथाह बोझ के तले
असफल हो प्रयत्न छोड़ देती है
ज्यादा से ज्यादा प्रयास सफल होने पर
छिटक कर दानों की तरह दूर चली जाती है

जहाँ कोई नही जानता उसे
और कोई जान भी गया
तो बिखरे दानों की तरह समेटकर
फिर उसी जाँत में डाल देता है
पिसने के लिए
पिसकर आटा बन जाती है
सब उसकी रोटी को मजे से खाते हैं
और उसके हिस्से में आती है
आधी तिहाई बची सबसे नीचे की रोटी
जो ऐसा लगता है
उसके भीतर की
ऊबन,तपिश,उलझन की गर्मी से
बनी भाप
से भीग जाती है
कभी कभी ज्यादा भूख होने पर
उस रोटी को भी नही छोड़ते लोग
भूल जाते है
कि उसका भी कोई
हिस्सा होगा
और फिर
सोना पड़ता है उसे
यूँ ही खाली पेट
क्योंकि औरत का कोई हिस्सा नही होता
पर
वह सबका हिस्सा होती है।
-पूजा तिवारी

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