आप निर्दोष थे......
रात काली मुझे तो डराती रही,
जान जाती रही जान आती रही।
जान जाती रही जान आती रही।
तू न आया न पाती लिखी प्रेम की,
ख़ैर तेरी ख़ुदा से मनाती रही।
ख़ैर तेरी ख़ुदा से मनाती रही।
आपकी आरज़ू आपकी जुस्तजू
ख़्वाब मैं आपके ही सजाती रही।
ख़्वाब मैं आपके ही सजाती रही।
एक तू ही जिसे प्यार मैंने किया,
बालमा याद तेरी रुलाती रही॥१॥
बालमा याद तेरी रुलाती रही॥१॥
साजना बेरुख़ी ये तुम्हारी मुझे,
ज़िन्दगी में हमेशा सताती रही।
ज़िन्दगी में हमेशा सताती रही।
देख मैंने किया है तुझे प्यार यूँ,
रूठती जो रही मान जाती रही।
रूठती जो रही मान जाती रही।
प्यार के खेल में दाँव तेरे चले,
जीत पाई न मैं मात खाती रही।
जीत पाई न मैं मात खाती रही।
आप निर्दोष थे मैं ख़तावार थी,
आशिक़ी की सज़ा आप पाती रही॥२॥
आशिक़ी की सज़ा आप पाती रही॥२॥
रचनाकार- निर्दोष दीक्षित
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विधा- उपरोक्त रचना में गंगोदक सवैया छंद को ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
शिल्प(गंगोदक सवैया)- चार चरण का छंद। प्रत्येक चरण में 8 रगण(212), 4 रगण पर यति।
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