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सत्य से भ्रमित नयन क्यों ?

सत्य से भ्रमित नयन क्यों ?
लक्ष्य से थकित चरण क्यों ? 
साथ हों हृदय की संवेदनायें,
भाव में प्रणव की आराधनायें,
दर्प से दमित वदन क्यों ?
सत्य से भ्रमित नयन क्यों ?
क्यों हुआ विचलित मन
कर्म के पथ पर,
हो सदा प्रेम सज्जित
मर्म के रथ पर,
भय से कथित वचन क्यों ?
सत्य से भ्रमित नयन क्यों ?
भ्रम मन के कवित्व में
कोई नही,
कलम स्वयं दायित्व से
रोई नही,
यश से इच्छित नमन क्यों ?
सत्य से भ्रमित नयन क्यों ?
--- निरुपमा मिश्रा "नीरु"

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