खजूरदानी - बाल कविता
आओ बच्चों सुनो एक कहानी,
न था राजा , न थी रानी।
केवल थी इक बिल्ली सयानी,
खानी पड़ी जिसे मुँह की खानी।।
बिल्ली की थी एक आदत पुरानी,
कि जो भी चीज पसंद उसे आती,
वह चोरी - चुपके उसे खूब खाती,
जो पटवारी को कभी न भाती।
पटवारी करता रखवारी,
एक खजूर के पेड़ की,
जिसका फल बिल्ली खा जाती,
और कुछ भी न पाते पटवारी जी।
आखिर हार कर पटवारी ने,
एक "जाल" बिछा दिया,
उस बिल्ली की धृष्टता को,
आज "धता" बता दिया।
बिल्ली जब भी पेड़ पर चढ़ती,
नीचे घंटी टन - टन करती,
बिल्ली ने जब देखी चाल,
उसने भी सोची उल्टी चाल।
पटवारी की चाल ने ,
सोती बिल्ली जगा दिया,
उस छोटी सी जान को,
बड़ा जंजाल बना दिया।
सोचा यदि हो खजूरदानी,
तो फिर करूँ अपनी मनमानी,
इस "खजूरे " के पेड़ को,
अपनी खजूरदानी में बंद कर दूँ।
पटवारी से छुपा कर,
"खजूरदानी" दूर ले जाऊं,
फिर खजूर के पेड़ पर चढ़,
सुबह सुबह मैं खजूर खाऊँ।
बिल्ली एक कटोरा पायी,
टनाटनाती बाहर आयी,
ले जाकर खजूर के पास,
लगी खोदने पेड़ को आज।
लगभग तीन घंटो के बाद,
बिल्ली खोद चुकी थी ख़ास,
तभी थोड़ा सा पेड़ हिला,
उसके सिर पर खजूर गिरा।
गिरते ही वह अचेत हो गयी,
हुआ चेत तो जेल गयी,
बिल्ली भी पछताई खूब,
बोली पटवारी मुझसे न रूठ।
बोली आज माफ़ कर दे,
करती हूँ इक वादा तुझसे,
न "खजूर" न "खजूरदानी",
न होगी तुझको परेशानी।
लेखक
न था राजा , न थी रानी।
केवल थी इक बिल्ली सयानी,
खानी पड़ी जिसे मुँह की खानी।।
बिल्ली की थी एक आदत पुरानी,
कि जो भी चीज पसंद उसे आती,
वह चोरी - चुपके उसे खूब खाती,
जो पटवारी को कभी न भाती।
पटवारी करता रखवारी,
एक खजूर के पेड़ की,
जिसका फल बिल्ली खा जाती,
और कुछ भी न पाते पटवारी जी।
आखिर हार कर पटवारी ने,
एक "जाल" बिछा दिया,
उस बिल्ली की धृष्टता को,
आज "धता" बता दिया।
बिल्ली जब भी पेड़ पर चढ़ती,
नीचे घंटी टन - टन करती,
बिल्ली ने जब देखी चाल,
उसने भी सोची उल्टी चाल।
पटवारी की चाल ने ,
सोती बिल्ली जगा दिया,
उस छोटी सी जान को,
बड़ा जंजाल बना दिया।
सोचा यदि हो खजूरदानी,
तो फिर करूँ अपनी मनमानी,
इस "खजूरे " के पेड़ को,
अपनी खजूरदानी में बंद कर दूँ।
पटवारी से छुपा कर,
"खजूरदानी" दूर ले जाऊं,
फिर खजूर के पेड़ पर चढ़,
सुबह सुबह मैं खजूर खाऊँ।
बिल्ली एक कटोरा पायी,
टनाटनाती बाहर आयी,
ले जाकर खजूर के पास,
लगी खोदने पेड़ को आज।
लगभग तीन घंटो के बाद,
बिल्ली खोद चुकी थी ख़ास,
तभी थोड़ा सा पेड़ हिला,
उसके सिर पर खजूर गिरा।
गिरते ही वह अचेत हो गयी,
हुआ चेत तो जेल गयी,
बिल्ली भी पछताई खूब,
बोली पटवारी मुझसे न रूठ।
बोली आज माफ़ कर दे,
करती हूँ इक वादा तुझसे,
न "खजूर" न "खजूरदानी",
न होगी तुझको परेशानी।
लेखक
राजीव पुरी गोस्वामी असिस्टेंट टीचर प्रा0 वि0 रामपुर ( शेषपुर समोधा )
बछरावां रायबरेली
बछरावां रायबरेली
Bahut manbhawan kavita, Rajeev ji ko bahut bahut badhayi ho. Yah kavita mai bhi school mai bachho ko sunaugi.
जवाब देंहटाएंThank you vandana ji
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