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माँ तो बेनजीर है

माँ तो बेनज़ीर है ।
      सर्दी की धूप है माँ
      गर्मी की छाँव है,
      ममता का रूप है
      मुस्तकबिल और मुक़ाम है ।
मेरी क़िस्मत मेरी तक़दीर है।
माँ तो बेनज़ीर है ।
       बोलूं तो आवाज है माँ
        गाऊँ तो अन्दाज़,
       छेडूँ वो साज़ है माँ
       ना ज़ाहिर हो वो राज़ ।
त्याग और मोहब्बत की तस्वीर है।
माँ तो बेनज़ीर है।
        प्यास में प्याला है माँ
        भूख में निवाला,
        मर्ज़ का सम्भाला है माँ
        अन्धेरे में उजाला ।
मेरे हर ख्वाब की ताबीर है
माँ तो बेनज़ीर है ।
         डूबूँ तो किनारा है माँ
         भटकूं तो इशारा ,
         टूटूँ तो सहारा है माँ
          जन्नत का नज़ारा ।
मेरी दौलत मेरी जागीर है
माँ तो बेनज़ीर है ।
          दर्द में राहत है माँ
          जीने की वो चाहत,
          लहजे की नज़ाकत है माँ
          सीरत से शराफ़त ।
जो रिश्तों को बाँधे वो जंजीर है
माँ तो बेनज़ीर है ।
           गुरबत में दौलत है माँ
           घर की है वो बरकत,
           मन्ज़िल की हसरत है माँ
           शोहरत है वो इज़्ज़त ।
लफ्ज़ों में जो बयाँ ना हो वो तहरीर है
माँ तो बेनज़ीर है।
            ज़िन्दगी का आगाज़ है माँ
            प्यार का अहसास,
            दुख में सुख की आस है माँ
            मेरी है वो हमराज़ ।
जो हर मुश्किल को काटे वो शमशीर है
माँ तो बेनज़ीर है।

रचयिता
फराह हारून
प्राथमिक विद्यालय मढ़ैया भासी,
वि ख सालारपुर,
जनपद बदायूँ

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