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बेचारे अध्यापक

आजकल हम विद्यालयों में कुछ इस तरह शिक्षा के बीज बो रहे हैं।
हमारे हेड मास्टर साहब राशन और हम सिलेंडर ढो रहे हैं ।।
भाई साहब हमारी किस्मत ने भी की है हमसे बहुत बेवफाई ।
अध्यापक होते हुए भी बना दिया हमें हलवाई।।
सब्जी तेल मिर्च मसालों का ही दिन भर करना इंतजाम।
अब हम अध्यापकों का हो गया है प्रमुख काम।।
मजबूरन हम अपने अध्यापक अपनी पहचान गंवा रहे हैं।
कभी फल विक्रेता तो कभी दूधिये नजर आ रहे हैं ।।
कई जिलों में दूध पीकर बच्चे बीमार क्या पड़े हमारे हेड मास्टर साहब दिमाग लगाने लगे ।
बच्चों से पहले वह हमको ही दूध पिलाने लगे।।
चपरासी भंडारी बाबू और ना जाने कितने दायित्व निभा रहे हैं।
शेष समय में हम शिक्षा के स्तर को उठा रहे हैं ।।
फिर भी लोग हमें ऐसी शक की नजर से देखते हैं जैसे ISIS के गुर्गे हों।
हमें देखकर बाबू की लार टपकने लगती है जैसे हम कोई मोटे मुर्गे हों।।
अब तो छोटे-छोटे उत्सव पर भी विद्यालय में महफिल सजेगी ।
अब वो दिन दूर नहीं जब बच्चा मगरु के होगा और ढोलक सरकारी स्कूल में बजेगी।।
मास्टर साहब और दीदी मिलकर जच्चा गीत गाएंगे।
बच्चा अवकाश के दिन हुआ तो भी विद्यालय आकर उत्सव मनाएंगे ।।
एक ओर शिक्षा की गुणवत्ता के लिए बहुत कड़ाई हो रही है।
पर हकीकत यह है कि बिना किताबों के ही पढ़ाई हो रही है।।
संसाधन विहीन बच्चे बिना कॉपी पेन के ही पढ़ रहे हैं। और कुछ बुद्धिजीवी कानवेंट से हमारी तुलना कर रहे हैं।।
प्रधान और अधिकारी कमीशन पर कमिशन पेल रहे हैं
और कार्रवाई बेचारे अध्यापक झेल रहे हैं।।

रचयिता
अजीत शुक्ल, स0अ0,
प्रा0वि0 तड़ौरा,
वि0क्षे0-साण्डी,
जनपद-हरदोई।

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