शिक्षक हूँ
शिक्षक हूँ...
लड़खड़ाते पैरों को
चलने योग्य बनाता हूँ,
तुतलाती ज़ुबानों को
बोलना सिखाता हूँ
दादा व दादी की
कहानियाँ सुनाता हूँ
शिक्षक हूँ
राष्ट्र की नींव बनाता हूँ
भारत माँ का आँचल
सप्तरंगों से सजाता हूँ,
नौनिहालों के भविष्य का
छायाचित्र बनाता हूँ
केसरिया और हरा में
मिट्टी की महक मिलाता हूँ,
चित्रकार हूँ
भारत की तस्वीर बनाता हूँ
क्रुद्ध व अशांत मन पर
चन्दन का लेप लगाता हूँ,
भले-बुरे कर्मों का
परिणाम-चित्र दिखाता हूँ
भटके कर्णधारों को
रास्ता बतलाता हूँ,
मार्गदर्शक हूँ
समाज को बुराइयों से बचाता हूँ
प्रकृति और सृष्टि के
रहस्य को समझाता हूँ,
जीव और जगत के
सम्बन्धों को दर्शाता हूँ
जन्म और मरण की
पहेलियाँ सुलझाता हूँ,
दार्शनिक हूँ
जिंदगी का फलसफ़ा बतलाता हूँ
बाहर से चोट करके
अंदर से बचाता हूँ,
दोराहे पर खड़ा होकर
फ़र्ज अपना निभाता हूँ
कभी दे दूँ डाँट
कभी प्यार जताता हूँ,
कुम्हार हूँ
घड़े को सुडौल बनाता हूँ
लेखक
अशोक कुमार गुप्त
स0अ0
प्रा0 वि0 टड़वा रामबर
क्षेत्र- रामकोला
जनपद- कुशीनगर
लड़खड़ाते पैरों को
चलने योग्य बनाता हूँ,
तुतलाती ज़ुबानों को
बोलना सिखाता हूँ
दादा व दादी की
कहानियाँ सुनाता हूँ
शिक्षक हूँ
राष्ट्र की नींव बनाता हूँ
भारत माँ का आँचल
सप्तरंगों से सजाता हूँ,
नौनिहालों के भविष्य का
छायाचित्र बनाता हूँ
केसरिया और हरा में
मिट्टी की महक मिलाता हूँ,
चित्रकार हूँ
भारत की तस्वीर बनाता हूँ
क्रुद्ध व अशांत मन पर
चन्दन का लेप लगाता हूँ,
भले-बुरे कर्मों का
परिणाम-चित्र दिखाता हूँ
भटके कर्णधारों को
रास्ता बतलाता हूँ,
मार्गदर्शक हूँ
समाज को बुराइयों से बचाता हूँ
प्रकृति और सृष्टि के
रहस्य को समझाता हूँ,
जीव और जगत के
सम्बन्धों को दर्शाता हूँ
जन्म और मरण की
पहेलियाँ सुलझाता हूँ,
दार्शनिक हूँ
जिंदगी का फलसफ़ा बतलाता हूँ
बाहर से चोट करके
अंदर से बचाता हूँ,
दोराहे पर खड़ा होकर
फ़र्ज अपना निभाता हूँ
कभी दे दूँ डाँट
कभी प्यार जताता हूँ,
कुम्हार हूँ
घड़े को सुडौल बनाता हूँ
लेखक
अशोक कुमार गुप्त
स0अ0
प्रा0 वि0 टड़वा रामबर
क्षेत्र- रामकोला
जनपद- कुशीनगर
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