सयानापन
सयानापन
आज सयानापन इतना हावी हो गया है कि उसके आगे रिश्ते-नाते,सगे-सम्बन्धी,बंधु-बांधव सब बौने हो गए हैं। चतुराई की पैजनियांँ बाँधे हम यूँ दौड़े जाते हैं कि हमारी चालाकी उस रुमझुम आवाज में ही कहीं अदृश्य हो जाती है और सामने वाले के कान में क्षणिक ही सही पर सुखद एहसास करा जाती है और हम...! सफल हो जाते हैं अपने दोयम दर्जे के चरित्र को चरितार्थ करने में।
सही और गलत में पहचान करना तो आज मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लग रहा है... बताइए न! कैसे करेंगे...? जो जितना झूठा है,वह उतना मीठा है.. वाह्य जितना सरल,अंतर उतना ही जटिल...कथनी जितनी उत्तम,करनी उतनी अधम..। हम जो हैं,वो दिखते नहीं और जो दिखते हैं,वो हैं नहीं.. और शायद पूरी जिंदगी हम एक पात्र में उभय चरित्र को सहेजने के अर्थहीन प्रयास में इस अनमोल कृति की मूल वृत्ति तक नहीं पहुंँच पाते..।
मलिन मन पर धवल कलेवर अक्सर हमारी आंँखों में धूल झोंक देता है। मूल को पहचानने में ही भूल हो जाती है।इस मामले में हमसे तो अच्छे पशु हैं..कम से कम उनके वाह्य रूप-रंग से उनके प्रकृति का परिचय तो हो जाता है...उनके स्वरूप का भान तो हो जाता है..
नैतिकता का ढलता सूरज,
चहुंँओर यहांँ अंँधेरा है।
सदाचार पे छाई बदली,
कुहासा यहांँ घनेरा है।।
डाल-डाल पे कलुष है बैठा,
हर उपवन में बसेरा है।
झूठ की झुमरी मुंँह चिढ़ाये,
छलिया सफल चितेरा है।।
स्वानुकूल हैं तर्क हमारे,
संस्कृति बेचारी लचर हुई।
बुद्धिमता अब रही नहीं,
बुद्धि बेशक प्रखर हुई।।
माटी का ये अद्भुत मूरत,
ऐसा प्रभु पथेरा है।
अब से भी गर जाग उठो,
सम्मुख नया सवेरा है।।
✍️
अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"(सoअo)
पू०मा०वि०- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उoप्रo)
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