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चित्राभिव्यक्ति

चित्राभिव्यक्ति

सरहद पर आखिरी साँसें लेते हुए एक वीर का अपनी पत्नी को संदेश

रे कपोत! ले जाओ संदेशा 
मेरी पत्नी तक पहुंचा देना, 
देख न पाऊँगा अब उसको 
उसे ज़रा बता देना.... 
रे कपोत! ले जाओ संदेशा.... 

तुम हो मेरी प्राण प्रिये  
जी भर कर तुमको देखा ना, 
मिलन हुआ एक रात का बस 
फिर तुमसे मैं मिल पाया ना.. 
वादा जो तुमसे किया था मैंने 
जल्दी मैं वापस आऊँगा, 
वादा तो पूरा करूँगा मैं 
पर तुम्हें देख न पाऊँगा... 
रे कपोत! ले जाओ संदेशा...

तुम हो एक वीर की पत्नी 
वीरांगना की भाँति रहना, 
जब देखो मुझे तिरंगे में लिपटा 
एक अश्क न नीचे गिरा देना.. 
हसकर करना विदा मुझे
माँ-बाप का सहारा तुम बनना, 
मेरी कमी महसूस न हो 
ऐसे उनका ख्याल रखना.. 
रे कपोत! ले जाओ संदेशा... 

बस एक बात का दु:ख है मुझे 
अपनी बच्ची को देख पाया ना,
जब घर पहुँचूँ कफन में मैं 
तो एक बार गले लगा देना.. 
एक शूरवीर की बेटी है वह 
फौलादी उसे बना देना, 
कोई आँख उठा कर देखे तो 
आँख नोंचनी उसे सिखा देना.. 
रे कपोत! ले जाओ संदेशा... 

एक आखिरी इच्छा..
जिस माटी में मैं खेल बड़ा हुआ 
उस माटी में ही मिला देना, 
रम जाऊँ रज-रज में उसकी 
मेरी राख वही मिला देना.. 
जिसमें जब खेलें युवा गाँव के 
देश प्रेम से भर जाएं, 
फिर भर्ती होकर सेना में 
सरहद पे तिरंगा लहराएं...
 रे क क क......

✍️
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर

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