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लाकडाउन की यादें

लाकडाउन की  यादें
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लंबी
पथरीली सड़कों पर
अपने 
खून और पसीने की
छाप छोड़ते
जबकि तुम लौट गए हो
अपने घर को
ऐसे में
याद आती है
तुम और तुम्हारी
नीम की छांव
अक्सर 
शाम की चाय के साथ जो
मुझे खींच ले जाती
बालकनी के उस हिस्से में
जो कि
अब सूना पड़ा है
तुम्हारे चले जाने के बाद से ही
जहां से
मैं घंटों देखा करता
कच्चे धागों में उलझे हुए
तुम और तुम्हारे छोटे-से संसार को

तुम्हारे 
चले जाने के बाद से ही
तुम्हारी जगह पर
अक्सर आ बैठता है
एक कुत्ता
हांफता हुआ 
जिसे भी है इंतजार
तुम्हारे आने का
तुम्हारी बची हुई रोटियों में
अपने हिस्सा का
और वो
उम्मीद और सपने 
जिसको तलाशते 
चले आए थे
तुम
चंद खोटे सिक्कों के साथ, वहीं 
बिखरे पड़े हैं तुम्हारे 
इंतज़ार में
कि फिर से तुम्हारे
हुनरमंद हांथ
सम्भाल लेंगे
छोटी - बड़ी की सूइयां
पालिश के किसिम - किसिम के रंगीन डिब्बे
सफेद क्रीम,
तरह-तरह के ब्रश
ग्लू की शीशी और
वो छोटे- छोटे 
करीने से रखे कांटियों भरे डिब्बे
साथ में वो तुम्हारा रंगीन चमड़ों से भरा बैग
जिनमें 
तुम्हारी  छोटी  गोल मटोल आंखें
एक 
कुशल चिकित्सक की तरह
तलाशती रहतीं थीं
वो बेहतरीन तरीके जिन्हें तुम
हिकारत भरी नजरों से
फेंके गए
टूटे , बदबूदार,  बेजान चप्पलों और जूतों के साथ
आजमाते दिखते रहे...

✍️
राजीव कुमार
स. अध्यापक
पू. मा. वि. हाफ़िज़ नगर
क्षेत्र - भटहट
जनपद - गोरखपुर

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