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नेपथ्य

नेपथ्य

ऐ सड़क तू कभी थकती नही,
    न सोती ,न जगती,
     न खाती, न पीती।
चलती है पल-पल,अनवरत,निरन्तर।
ऐ सड़क.........
काट के जन-मानस, तरु की शाखाएं,
करते तुझे बेजान,निःश्वांस।
क्या वो ईक पल भी सुनते नहीँ तेरी कराहें।
ऐ सड़क..............
कभी ट्रक, कभी बस,चार पहिया वाहन,
दो पहिया, रिक्शा, ऑटो सब नित करते घायल।
कोई देता ठोकर, कोई करता गढ्ढे,
बगैर समझे पीड़ा तेरी माते।
ऐ सडक........
कोई पान थूके,कोई करता गन्दा,
कहीं छीटें खून के,कहि होता झगड़ा।
तरस भी न आता कभी तुझ पर किसी को,
नही कोई होता, कभी भी शर्मिन्दा।
ऐ सड़क..........
देखती मैं गुनती,सोचती और तड़पती,
व्यथित देख तुझको ,घुट घुट के रोती।
सोचती हूँ ढांप लूं,तुझे तरु की शाखाओं से,
सींच के जल से,कलेजा करू तेरा ठण्डा।
ऐ सड़क......
जिस रोज चलता भारत का कोई भाग्य विधाता,
चुने,कलर ,गेरू से तुझे रँगा जाता।
देख इस बनावटी पन को,हंसी हमको आती,
पर ए सड़क तू तनिक भी न घबराती।
ऐ सड़क......
लख अथक श्रम निरन्तर तेरा चलना,
बनती श्रोत प्रेरणा धैर्य है तेरा गहना।
माँ जस पीड़ा सहके सुखी सबको करना,
करूँ?किन -किन गुणों का बखान, है क्या तेरा कहना?
गढ्ढे ,पीक, चोट,खून,सब समेट खुद में,
हमको भी प्रेरित  करता निरन्तर तेरा चलना।
ऐ सड़क.........
कभी बनती खाई,कभी जल भराई,
पीड़ा नित सहती, है धरती थर्राई,
कहूँ क्या व्यथा,विह्वल मन है होता,
कर समाहित पीड़ा खुद में,करती तू भलाई।।।
ऐ सड़क...........

✍️
 ममताप्रीति श्रीवास्तव
      (स0अ0)
       गोरखपुर

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