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फलक में चांद कुछ धुंधला सा है

फलक में चांद कुछ धुंधला सा है


फलक में चांद कुछ धुंधला सा है,
फिजाओं का रुख कुछ बदला सा है,
मिला न पाये जिनके दिल से दिल,
उनके जाने पर दिल क्यों पिघला सा है?

जिनकी खुशी में खुद की खुशी ढूंढते थे,
मुस्कराते देख मिलता था दिल को सुकून,
अब वो खुश है जब अपनी दुनिया में तो,
 मन ये मेरा आज क्यों मचला सा है?

दरिया-ए-मोहब्बत में उतर भी न पाए,
उम्मीद में उनकी किसी को चाहा भी नही,
मिल सके न वो जमाना भी हुआ बेगाना,
दुनिया के मेले में मन क्यों अकेला सा है?

खता थी मेरी इल्जाम उनको दे नहीं सकते,
मुहब्बत का पैगाम उनको दे नहीं पाये,
अब तो जिंदगी भर रहेगी कुछ कमी सी,
मिज़ाज अपना आज क्यों बदला सा है?

गए तो थे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में भी,
न खुद पर था यकीं न खुदा पर था भरोसा,
जमीं-ओ-आसमां का फर्क सा था दरम्यां में,
दुआ ही न माँगी तो खुदा से क्यों गिला सा है?


बृजेश श्रीवास्तव
उरई (जालौन)

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