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मैं कोशिश किया करती हूं😔

मैं कोशिश किया करती हूं😔

रोज ही रेखाओं से कुछ
आकृतियां उकेरा करती हूं...।
श्वेत कैनवास के धरातल पर
रंग कई भरा करती हूं...।
फिर भी जाने क्यों...?
उभर नहीं पाती मन में
चल रही अनदेखी आकृतियां..!
ना ही वह रंग कैनवस के
मन को सजीव लगते हैं ।
सोचती हूं क्या.....ये
जीवन की वह परिस्थितियां हैं
जिनमें मै अक्सर.....
सबको रेखाओं सा जोड़कर
सब में रंग भरने की
कोशिश करती हूं ...।
मुश्किलें हट जाए सबकी
परायापन ना रहे कही
अपनों के लिए रोज एक नया 
परवाह ....किया करती हूं।
जुड़ सके हर शक्स दुनिया के
हर दर्द से यहां ,,
बांट ले खुशियां कभी 
दूसरों के लिए यहां ....
हो धरा परिपूर्ण संतुष्ट हर इंसान,,
उनको अपनी बातों से इस सच का आइना दिखाया करती हूं ।
क्या कहूं आजकल बातें 
वीरानी सी हो गई है...!
कहर है ऐसा कि ना  दिन लगता है ना रात रात सी लगती है 
धुंध में खोई मन की हर
अभिलाषाओं और सपनों को वापस फिर से उसी हालात में लाने की दुआ किया करती हूं ,...।
पर्व त्यौहार बेरंग से हुए हैं जो
थम गई है खुशियां दिलों की सभी
धूम वह गलियों की आज हर आंखों में...... जाने अनजाने,
सब में खोजा करती हूं ।
दुख बन जाती है ताकत
दुखों से हौसला ना हारने के
 गुन बताया करती हूं  ।
ला सकते हैं सभी तारे...
आसमा से जमी तक..
बस उन तक पहुंचने की
सीढ़ियां बुना करती हूं ।
अनजान है सब खुद के ...
हुनर से यारों,,
उनके अंदर के हुनर को मैं खुद ही तराशा करती हूं...।
कहां मिलता है चैन अपनों के बिना सबको यहां..
लड़ते रहते हैं जो ,उन्हें जोड़ने की
कोशिश किया करती हूं ...।
मानती हूं हालात कुछ ऐसे होते हैं
जिंदगी के कभी-कभी फिर भी
जिंदगी को खुशनुमा बनाने की कोशिश किया करती हूं ।
बदल तो सकती नहीं 
मेरी कोशिशों से.....
देश में हो रही अनहोनी ,गरीबी भुखमरी के मंजर....!
फिर भी ... सब सबके लिए सोचे
हृदय भावों को बदल पाए...।
यह प्रयास कुछ लाइनों में 
लिखा करती हूं ,,।
वैसे तो फिक्र नहीं किसी को किसी के जज्बातों और हालात का .... इसलिए तो खुद को मैं खुद की ही कमियों में......
 तलाश किया करती हूं ।
जीवन की हर पंक्ति पर 
हर अपनों के लिए रोज-रोज ...
नई कविताएं लिखने की 
कोशिश किया करती ...।।


✍️
दीप्ति राय (दीपांजलि )
सहायक अध्यापक 
प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपु

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