" उड़ गया पंछी "
" उड़ गया पंछी "
उड़ गया मोहब्बत का पंछी
गयी बहार दिल के चमन से
न इंतज़ार मेरा अब कोई
न कोई शिकायत रही तुझसे
दफन कर आया सब वादे
जो किये थे कभी मैंने तूने
छोड़ आया दूर ख्वाब सुनहरे
जो देखे थे कभी संग हमने
सफर तो अभी बाकी था
हमसफर रास्ता बदल गए
तुझे मंजिल मिले तेरी
मुझे भटकते कारवाँ
क्या शिकायत करुँ अब
अपनी इस किस्मत से
जो मिला मुझको
किनारे करता गया
छोड़ना ही था तो
कोई इल्जाम लगाते
गुमनाम क्यों कर गए
मेरी बेपनाह मोहब्वत को
छटपटाते जज्बात अब
कोई आरजू नही रखते
फिर से पा लू तुझको
ये कसक भी न छोड़ी तूने
हिचकियां आये तो
न सोचना याद किया मैंने
उड़ा दिया वो पंछी तूने
पनाह दी जिसे मैंने
अपने दिल के आशियाने में
हर्षवर्धन शर्मा "स्वामी"
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सत्तोनंगली
जनपद-बिजनौर
संपर्क - 8941001970
Nice
जवाब देंहटाएंHeart touching poem
जवाब देंहटाएंRefreshed some old memories...
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