चंचल मन
चंचल मन
मंजिल की है कई डगर,
कुछ आने की कुछ जाने की।
कुछ मन बीती भी तो जानो,
।। हर बात नहीं समझाने की ।।
वो झिलमिल उपवन में देखो,
जब कोयल चहक के गाती है।
कुँहू - कुँहू का राग जपे,
जीवन की रीत निभाती है।
तुम गीतों की तो ताल सुनो,
क्या इच्छा है बतलाने की।
कुछ मन बीती भी तो जानो।
।। हर बात नहीं समझाने की ।।
सागर की चंचल लहरें देखो,
जब वो यूं कल-कल करती हैं।
झर-झर झरनों से मिल कर के,
अपनी मौजों में बहती है।
न रुकने का तो पहलू जानों,
क्या जल्दी है कहीं जाने की?
कुछ मन बीती भी तो जानो,
।। हर बात नहीं समझाने की।।
जीवन के आंगन को देखो,
कोई द्वेष-भाव की बात नहीं।
लगी 'प्रीत' भी कोई खास नहीं,
गर जीत के भी सब हार गए।
तुम हार का मकसद तो जानों,
क्या उत्सुकता नहीं थी पाने की?
कुछ मन बीती भी तो जानो,
।। हर बात नहीं समझाने की ll
✍️
प्रीति जाटव
जालौन
lovely
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