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'और कब तक'

'और कब तक'

कहोगे बातें पुरानी और कब तक।
बरसेगा आंखों से पानी और कब तक।
दो पक्षी एक डाल पे आये तो थे,
साथ जीने की सौगंध खाये तो थे,
फिर वही झूठी कहानी और कब तक।।
बरसेगा ०
कुछ अनदेखे स्वप्न से आने लगे हैं,
तारे भी अब रात झुठलाने लगे हैं,
सुरभित होगी रात रानी और कब तक।।
बरसेगा०
अतृप्त ही रह गयी मिलन की प्यास,
थक गया हूं मैं यहां गिन गिन के सांस,
चलेगा ये दाना पानी और कब तक।।
बरसेगा०
कह गये आऊंगा लेकिन वो न आये,
पीर अन्तर्मन की हम अब तक छिपाये,
शेष मैं रखूं निशानी और कब तक।।
बरसेगा०

✍️
शेष मणि शर्मा'इलाहाबादी'
प्रा०वि०बहेरा,वि०खं०-महोली
जनपद सीतापुर उत्तर प्रदेश 
मोब नं-9415676623


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