रे मन! तू बड़ा चंचल है रे
विषय- सागर
शीर्षक- रे मन! तू बड़ा चंचल है रे
रे मन! तू बड़ा चंचल है रे...
सागर सा गंभीर तू बन,
चाहे आए कितनी ज्वार भाटा,
हर स्थिति में तू बन जा सम।
रे मन! तू बड़ा चंचल है रे...
तू रहता सिर्फ अपनी धुन में,
किसी और की परवाह न करता,
एक आभासी अनजाने भय से,
व्यर्थ ही चिंतित सदा रहता।
सागर से, जरा सीख तू ले,
कितनों को समाहित वह करता,
शैवाल से लेकर व्हेल मछली तक,
सबका ख्याल वह रखता।
अपने लिए क्या जीना,
औरों के लिए जी कर दिखा,
सागर की हर लहर,
सिखाती हमें यही फलसफा।
छोड़ दे तू व्यर्थ की चिंता,
परहित में स्वयं को कर अर्पण,
चाहे आए कितनी ज्वार भाटा,
हर स्थिति में तू बन जा सम।
रे मन! तू बड़ा चंचल है रे...
✍️
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश
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