""खोयी मनुजता""
""खोयी मनुजता""
खो गई है संवेदना,
खो गई है चेतना,
खो गया है अपनापन,
खो गई है भावना।
स्वार्थ है चहुं दिस ,
मनुजता कहीं नहीं,
चाहिए सबको आकाश,
पर प्रयास कहीं नहीं।
आज सहोदर नहीं सहोदर,
कुंठा, द्वेष, मन में भरा,
खो गया है कहीं आदर,
मन विष विचारों से भरा।
विश्व बंधुत्व धुंधला हुआ अब,
वैमनस्य ने पैर जमाया है,
कहां है दीनबंधु कृष्ण अब,
जिसने धरा को अन्याय से बचाया है।
निर्मल मन शीतल काया,
अब कहां दिखती है,
मुख में राम ,हृदय में माया,
जग पर अधिपत्य रखती है।
सोयी मानुजता को भगवान,
शीघ्र ही जगाइए,
सच्चाई के सूरज को भगवन,
विश्व में पुनः चमकाइए।
✍️
नम्रता श्रीवास्तव (प्रoअo)
प्राथमिक विद्यालय बड़े हा स्याेंध
महुआ, बांदा
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