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सुबह आ गयी

बीती है निशा ,फिर सुबह आ गयी
गगन में केसरिया घटा छा गयी।

छिप गया चाँद भी,  न दीखे सितारा,
हुआ लाल पूरब , फैला के उजियारा ।

क्षितिज पर सुनहरी उषा मुस्कुराए
विहग वृंद मिलकर प्रभा गीत गाऐं ।

चमकती हरी घास ,कोरों में मोती,
ओस की बूंदे , तरु लताएँ भिगोती ।

हँस रही सब दिशाये, मंद मधुरिम हवाएं,
वृक्ष स्वागत है करते ,फैलाकर भुजाएं ।

विविध रंग भर , उड़ रही तितलियाँ ,
जल में है कमल खिले, कुंजन में कलियाँ ।

 भ्रमर करते गुन्जन,पुष्प-रस पान करते,
नीड़ छोड़ पक्षी ,भ्रमण पर निकलते  ।

है बेला अरुण की, उठो ,जाग  जाओ,
    अमूल्य है समय ,इसे व्यर्थ न  गंवाओ।

नई ऊर्जा भरने , फिर सुबह आ गयी।
गगन में केसरिया घटा छा गयी।

           
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र बावन,
हरदोई।

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