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ऐसे दीप जलाना अबकी

ऐसे दीप  जलाना  अबकी
दुःख तकलीफें और वेदना,
ले   जायें   जो   सबकी
ऐसे दीप  जलाना  अबकी
ऐसे दीप  जलाना  अबकी

दूर गांव  से जो आये  हैं,
शहरों में करने   मजदूरी
दीवाली पर भी प्रकाश ने,
जिनके घर  से की है दूरी
उस घर तक भी ख़ुशियाँ पहुंचें
जिनका खाट  बिछौना  धरती
ऐसे  दीप   जलाना  अबकी
ऐसे दीप  जलाना   अबकी

सहमी सहमी जाती हैं जो,
गांव  गली   चौराहों  से
और डरी रहती हैं हरदम,
अपनों  और परायों  से
उनकी भी ताकत बन जाओ,
लेतीं कोखों से जो सिसकी
ऐसे  दीप   जलाना  अबकी
ऐसे  दीप   जलाना  अबकी

नंगे  नंगे   पाँवों से  जो,
घूम रहे गलियों कूचों में
और ढूंढते हैं खाने  को,
जूठे  पत्तों के दोनों  में
उन तक भी प्रभात बन पहुँचो
जिनकी किस्मत उनसे खिसकी
ऐसे   दीप    जलाना   अबकी
ऐसे   दीप    जलाना   अबकी

दुःख तकलीफें और वेदना
ले   जायें   जो    सबकी
ऐसे दीप  जलाना  अबकी

रचयिता
श्रीश कुमार बाजपेई  " प्रभात " 
स•अ•, उच्च प्राथमिक विद्यालय टण्डौना,
हरियावां, हरदोई

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