दिये से दिये जलने लगे हैं
दिये से दिये जलने लगे हैं,
वही ख्वाब फिर सजने लगे हैं,
आ रहा बचपन शरारत भरा,
दर दीवार फिर खिलने लगे हैं।
वही ख्वाब फिर सजने लगे हैं,
आ रहा बचपन शरारत भरा,
दर दीवार फिर खिलने लगे हैं।
छू के अँगुल के पोर फिरसे,
अक्षर अब चहकने लगे हैं,
रँग भरने लगा है कागजों में,
तस्वीर नजरों में पलने लगे हैं।
अक्षर अब चहकने लगे हैं,
रँग भरने लगा है कागजों में,
तस्वीर नजरों में पलने लगे हैं।
ये तस्वीर देखो जगी है
आस की एक उम्मीद लेकर,
लेखनी लिख रही है इबारत,
स्कूल फिर से चमकने लगे हैं।
आस की एक उम्मीद लेकर,
लेखनी लिख रही है इबारत,
स्कूल फिर से चमकने लगे हैं।
जंग थोड़ी लगी थी यहाँ पर,
रोज़ दिवाली हमने मनाया,
अँधेरा घना छा रहा था,
अब ज्ञान दीपक चमकने लगे हैं।
रोज़ दिवाली हमने मनाया,
अँधेरा घना छा रहा था,
अब ज्ञान दीपक चमकने लगे हैं।
इस मंदिर में देखो पुजारी
रोज जलते है लौ की तपन में,
कोई दीपक बचे न धरा पर,
ज्ञान अग्नि सुलगने लगे है।
रोज जलते है लौ की तपन में,
कोई दीपक बचे न धरा पर,
ज्ञान अग्नि सुलगने लगे है।
बह रही ज्ञान गंगा यहाँ फिर,
फिर से रंगत बदलने लगे हैं,
जोड़ कर दिलों को वफ़ा से,
स्कूल फिर से बदलने लगे हैं।
फिर से रंगत बदलने लगे हैं,
जोड़ कर दिलों को वफ़ा से,
स्कूल फिर से बदलने लगे हैं।
कौन कहता है बेहतर नहीं हैं
अब किसी से कमतर नहीं हैं
साधनों को लड़ते हुए भी
कोहिनूर से चमकने लगे हैं।
अब किसी से कमतर नहीं हैं
साधनों को लड़ते हुए भी
कोहिनूर से चमकने लगे हैं।
भले हम हैं स्कूल सरकारी,
थोड़ी दूरी चलनी है बाकी,
आ गया प्रभात चलकर,
देख फूल से चेहरे खिलने लगे हैं।
थोड़ी दूरी चलनी है बाकी,
आ गया प्रभात चलकर,
देख फूल से चेहरे खिलने लगे हैं।
दिये से दिये जलने लगे हैं...
रचयिता
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी
(स0 अ0) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी
(स0 अ0) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
(9795524218)
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