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बेटियाँ

बेटियों को प्यार व दुलार आप दीजिये तो,
प्रेम रूपी बीज नित बोती हैं ये बेटियाँ।
घर हो य ससुराल सबको सँजोने हेतु,
जीवन के दु:ख को सहती हैं ये बेटियाँ।
बेटी और बेटे में न भेद कीजिये हुजूर,
बेटों से भी बढकर होती हैं ये बेटियाँ।
धरती सदृश्य भार सबका उठाने हेतु,
बोझ आँसुओं का नित ढोती हैं ये बेटियाँ।
देश की अखन्डता व एकता बढाने हेतु,
तोप तलवार भी चलाती हैं ये बेटियाँ।
काम हो कठिन किन्तु बेटों के समान हाथ,
देश के विकास में बटाती हैं ये बेटियाँ।
आसुरी प्रवृत्तियाँ मिटाने के लिये ही बन्धु,
दुर्गा कभी चन्डी बन जाती हैं ये बेटियाँ।
माता पन्नाधाय कभी झाँसीवाली रानी बन,
मान नित देश का बढाती हैं ये बेटियाँ।

रचयिता
आशुतोष'आशु',
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय सुआगाडा,
विकास खण्ड - भरावन,
जनपद - हरदोई।

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