एक ज़िंदा कलम पत्रकार..
एक ज़िंदा कलम पत्रकार..
कलम को लिखने का सामान नहीं ,
तलवार की तेज धार बनाया है हमने ।
महज बिकने वाली रोज की एक ताजा खबर नहीं ,
आवाम की सोच को एक बुलंद आवाज बनाया है हमने।
शोलों पर चलते हुए शब्दों को सहज नहीं ,
जलता हुआ अंगार बनाया है हमने ।
कांटों का ताज सर पर पहनकर ,
कागज को ही कफन बनाया है हमने ।
इरादों में सच का दम भरने वाली ,
फिज़ा का रुख बदलने वाली ,
तेज आंधी को रफ्तार बनाया है हमने ।
श्रृंगार लिखने वाला , चित्कार भी लिखने वाला ,
खुद को एक जिंदा कलम पत्रकार बनाया है हमने ।
यह चंद पंक्तियां हमारे राष्ट्र के सजग प्रहरी पत्रकार बंधुओं को श्रद्धा सुमन के रूप में अर्पित हैं।
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