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जिंदगी क्या है,,,,,

जिंदगी क्या है,,,,,,,
 पढ़ सको तो एक खुली किताब ना समझ सको तो एक अन बुझी सी पहेली,,,,,,,,
जिंदगी चलती रहती है 
एक सफर बनकर 
मंजिलों को पाना है तो ,,,,,,,,
चलते रहो मुसाफिर बन कर ।
हर पल रंग बदलती रहती है जिंदगी यहां ,,,,,
उन रंगों में ढल जाओ तुम 
खुद रंग बनकर ।
राह में कोई नहीं अपना 
बेगाने सब हैं ,,,,,,
उन्हीं में चंद खुशियां ढूंढ लो अपना बनकर ,,,।
ना कुछ लेकर आए ,
ना कुछ लेकर जाएंगे ,,
सिमट जाए ना कुछ राज ,,
आओ कह ले हमदर्द बनकर । आओ बांट लें खुशियों की
 हवाएं कुछ ,,
जो लगा कर बैठे हैं 
खुद के गमों की रोग कुछ,
महफूज कहां है रास्ते जिंदगी के यहां।
महफूज कर सको  सबको खुद का 
 खुद राहगीर बनकर ।

✍️
दीप्ति राय (दीप्तांजली)
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय रायगंज क्षेत्र खोराबार, गोरखपुर

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