मैं शायर तो नहीं
कोरोना महामारी ने मानव विभीषिका का जो हृदय विदारक दृश्य उपस्थित किया है वह दीर्घकालिक है। जिसने मनुष्य जाति को झकझोर कर रख दिया है।नदियों की धारा में बहते असंख्य शव और उनकी रेत में दबाए गए शवों को बेपर्दा करती बेमौसमी बारिश ने एक साथ अनेक प्रश्नो की बौछार कर दी है जिससे मानवता शर्मसार भी है और अनुत्तरित भी ।
मैं शायर तो नहीं
मैं शायर तो नहीं ,
हालात बयां न करूं,
इतना कायर तो नहीं ,
मैं शायर तो नहीं ।
तेरी मुफ़लिसी पर ,
आसमान रोया है ,
उसने ही रेत का ,
ये कफ़न धोया है ।
बेपर्दा हैं लाशें ,
बेपर्दा निज़ाम,
सच बड़ा नंगा ,
है शर्मसार गंगा ।
दौड़ते कुत्तों के झुंड,
लेकर मुँह में नरमुंड,
हैं लहरों में अस्थिकलश ,
रेत पर मुर्दों की नुमाईश ।
सुनाऊं क्या दलीलें ,
जब तेरी अदालत में,
मुक़दमा दायर ही नहीं ,
मैं शायर तो नहीं ।
जज़्बातों को दफ़नाऊं कैसे ,
शब्दों में ढालकर ग़म इनका
ये बेबस सूरत दिखाऊं कैसे,
मैं शायर तो नहीं ••••••••• ।
✍️
प्रदीप तेवतिया
एआरपी हिन्दी
सिम्भावली , हापुड़
📱7819889835
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