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आज के परिदृश्य पर एक नजर.....

आज के परिदृश्य पर एक नजर.....

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माना कि पतझड़ बहुत है
उजड़े बसेरे हर तरफ हैं
पर रात यह भी तो ढलेगी
सुबह नई फिर से खिलेगी।

धैर्य गिरने को खड़ा है
मौत का तांडव बड़ा है।
बिभीत्स मंजर दिख रहा है
हृदय फिर फिर बिलख रहा है।
कितने घरों के दीप बुझ गए
मांग के सिंदूर उजड़ गए।

ना लिख सकूं ना कह सकूं
ना देख सकूं ना रह सकूं।
हर श्वास अब विकल बड़ी है
जीवन के आगे मौत खड़ी है।
आती हुई हर एक खबर पर
दिल की धड़कन थम रही है।
बस अब नहीं, बस अब नहीं
हृदय से आह निकल रही है।

कितना सफर अब और बाकी
जो जी लिया बस जीवन वहीं था।
अपनों से सब अब दूर हैं
यहां कितने सब मजबूर हैं।

हे दयानिधि! करुण क्रंदन
अब वेग से रोक लीजिए।
हर घर का चिराग जलता रहे
तूफानों से रक्षा कीजिए।
हे प्रभु !तुम सर्वव्यापी
करुणा नजर हमपर कीजिए
जो दर्द का दरिया बह रहा
अब उसको थाम दीजिए,
अब उसको थाम दीजिए।
अब दया हम पर कीजिए।

🙏
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✍️
अलका खरे
स. अध्यापक (प्राथमिक विद्यालय रेव,मोंठ, झांसी)

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