प्रभु अर्ज है तुमसे यह दौर गुजार दो
प्रभु अर्ज है तुमसे यह दौर गुजार दो...
जग जीत लेगा मानव
अहंकार था पाले,
चहुंओर भय व्याप्त है
आशा की किरण जगा दो,
मचा है हाहाकार जीवन सवार दो
प्रभु अर्ज है तुमसे।
यह दौर गुजार दो।।
माना प्रकृति संग बड़ा खिलवाड़ किया मानव,
उन गलतियों से माहामारी बन खड़ा है दानव,
अब हाथ जोड़े खड़ा है दर पे तेरे,
अपनी बनाई दुनिया को फ़िर से निखार दो।
प्रभु अर्ज है तुमसे
यह दौर गुजार दो।।
जग जुगत लगाते थक रहा निष्फल हो रहे सारे प्रयास,
थर - थर जन कांप रहे
बस बची है एक ही आस
हम सब अबोध है,
छोड़ो नाराजगी
अब तो दुलार दो।
प्रभु अर्ज है तुमसे
यह दौर गुजार दो।।
यह खूबसूरत दुनिया जो बनाई है आपने,
सूरज निकल रहा पर छाया है अंधेरा,
ज्ञान - विज्ञान भी
लाचार हो गया है,
फिर से उपवन में फूल खिला दो
जन - जन के रोम - रोम में,
सतरंगी बहार भर दो।
प्रभु अर्ज है तुमसे
यह दौर गुजार दो।।
रवीन्द्र नाथ यादव (प्र. प्र. अ.)
कोड़ार उर्फ बघोर (नवीन)
क्षेत्र - गोला, गोरखपुर।
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