खामोश मै हूं
खामोश मै हूं
खामोश मैं हूं तो ना यह समझो,
कि मैं कुछ भी जानता नहीं हूं।
सिले हैं लव को तुम्हारे खातिर,
खुलेंगे तो तुम सुन ना सकोगे l
खामोश मैं हूं तो ना यह समझो,
कि मैं कुछ भी जानता नहीं हूं।
तुम्हारे जुल्मों सितम को सहना,
हमें यकीन है बन्द होगा एक दिन।
जहां ये समझेगा जब तुमको,
तुम्हारा नामो निशा न होगा।
खामोश मैं हूं तो ना यह समझो,
कि मैं कुछ भी जानता नहीं हूं।
मुझे यकीन है सबकी खुलेगी आंखें,
फिजा में उस दिन सुकून होगा l
तुम्हारे इन करतूतों का बदला,
लेंगे उस दिन तुम्हारे चाहने वाले l
खामोश मैं हूं तो ना यह समझो,
कि मैं कुछ भी जानता नहीं हूं।
✍️
मोo जियाउल हक
ARP हिन्दी
खोराबार, गोरखपुर
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