कर्मपथिक पुष्पांजलि
कर्मपथिक पुष्पांजलि
कर्म पथ पर जो चला ,
भय से कभी ना भयभीत हुआ ,
वहीं धीर धरा के माली है ,
कर्मों पर अर्पित जिनके
यह अश्रु , नहीं यह व्यथा नहीं
कल उगने वाले सुखद सूर्य की
एक नए सृजन की लाली है।
हे कर्म पथिक तुझे नमन
यही हमारी सच्ची पुष्पांजलि है।
बाधाओं से जो डरा नहीं ,
गिर कर ,थक कर जो रुका नहीं ,
संघर्षों में भी राह बनाने को ,
लक्ष्य सुनहरा अपना पाने को ,
निज स्वप्नों को देता तिलांजलि है ।
हे कर्म पथिक तुझे नमन
यही हमारी सच्ची पुष्पांजलि है।
साधारण क्या विलक्षण क्या ,
आरोह क्या अवरोह क्या,
संतोष , संतुलन के भाव समेटे ,
जेठ की चिलकती धूप में भी ,
देखे जो सावन की हरियाली है।
हे कर्म पथिक तुझे नमन ,
यही हमारी सच्ची पुष्पांजलि है।
यही हमारी सच्ची पुष्पांजलि है।
बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंSplendid
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर।
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