प्रेम की आवाज़
प्रेम की आवाज़ आई,
मेरे दिल की गली में
किसी मीठे संगीत की तरह
बजी,
और मैं ठहर गया,
उसकी धुन सुनने को।
प्रेम की आँखों में झाँका,
और मैं खो गया,
उसकी गहराइयों में
और मैं भूल गया,
अपनी सारी थकान,
अपनी सारी ज़रूरतें।
प्रेम ने मुझे गले लगाया,
और मैं रो पड़ा,
उसकी कोमलता से
और मैं भूल गया,
अपनी सारी पीड़ा,
अपनी सारी उदासी।
प्रेम ने मुझे चुंबन दिया,
और मैं जी उठा,
उसकी मिठास से
और मैं भूल गया,
अपना सारा अकेलापन,
अपना सारा डर।
प्रेम ने मुझे छोड़ दिया,
और मैं रो पड़ा,
उसके जाने से
और मैं भूल गया,
कि प्रेम कभी आता भी है,
और कभी जाता भी है।
✍️ प्रयासकर्ता : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
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