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पुरूष और स्त्री



राष्ट्र बनते हैं पुरुष
प्रकृति बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनता है भारत

अर्थ बनते हैं पुरुष
संस्कृति बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनता है समाज

विचार बनते हैं पुरुष
भावना बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनता है भविष्य

प्रेम बनते हैं पुरुष
सामवेद बनती हैं स्त्रियाँ
तब बनता है जीवन


राष्ट्र की कल्पना पुरुष करते हैं,
स्त्रियाँ उसे आकार देती हैं।
पुरुष उसे मजबूत बनाते हैं,
स्त्रियाँ उसे सुंदर बनाती हैं।

अर्थ की नींव पुरुष रखते हैं,
स्त्रियाँ उसे उन्नति देती हैं।
पुरुष उसे सुरक्षित रखते हैं,
स्त्रियाँ उसे समृद्ध बनाती हैं।

विचारों की उड़ान पुरुष भरते हैं,
स्त्रियाँ उन्हें परिपक्व बनाती हैं।
पुरुष उन्हें दिशा देते हैं,
स्त्रियाँ उन्हें अर्थ देती हैं।

प्रेम की आग पुरुष जलाते हैं,
स्त्रियाँ उसे उजाला देती हैं।
पुरुष उसे रोशन करते हैं,
स्त्रियाँ उसे गर्माहट देती हैं।

जीवन की धड़कन पुरुष है,
स्त्रियाँ उसे गति देती हैं।
पुरुष उसे शक्ति देते हैं,
स्त्रियाँ उसे सौंदर्य देती हैं।

पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही आवश्यक हैं,
दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।
जब वे दोनों मिलकर काम करते हैं,
तो वे कुछ भी असंभव कर सकते हैं।



भारत, समाज, भविष्य, जीवन! 
ये सभी पुरुष और स्त्रियों के सामंजस्य से ही संभव हैं। इस रचना में मैंने पुरुषों और स्त्रियों के बीच के संबंध को उक्त पंक्तियों में विस्तार दिया है। मैंने यह दिखाने की कोशिश की है कि पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। वे एक-दूसरे के पूरक हैं। जब वे दोनों मिलकर काम करते हैं, तो वे कुछ भी असंभव कर सकते हैं।



✍️ प्रयासकर्ता : प्रवीण त्रिवेदी  "दुनाली फतेहपुरी"

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