बेटी गई है बाहर पढ़ने
बेटी बाहर पढ़ने गई है,
पिता उदास हैं.
उन्हें लगता है कि उनकी बेटी अब उनसे दूर जा रही है,
और वे उसे कभी नहीं देख पाएंगे.
वे उसकी मुस्कान याद करते हैं,
उसकी हंसी याद करते हैं,
उसकी बातें याद करते हैं.
उसे बहुत याद करते हैं,
वे चाहते हैं कि वह वापस आ जाए.
वे जानते हैं कि वह वापस नहीं आ सकती,
क्योंकि वह पढ़ने गई है.
यह जानते हुए भी
कि यह उसके भविष्य के लिए अच्छा है,
वे दुखी हैं.
वे चाहते हैं कि बेटी हमेशा उनके साथ रहे,
वे यह भी जानते हैं कि यह संभव नहीं है.
इससे वे दुखी हैं,
और थोड़ा खुश भी हैं.
वे खुश हैं क्योंकि बेटी पढ़ने गई है,
वे जानते हैं कि वह एक दिन बेहतर इंसान बनेगी.
जिंदगी के सपनों को पूरा करेगी
इसी आकांक्षा में
वे गर्व महसूस करते हैं,
दुख को परे धकेलकर
अब बहुत खुश हैं
कि बेटी बाहर पढ़ने गई है।
✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
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