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रामराज

रामराज

(विधा- घनाक्षरी)

देखो शुभ घड़ी आई, 
खुशी की लहर छाई, 
देख भूमि पूजन को, 
नज़र टिकाए हैं । 

सालों वर्ष बीत गए, 
लाखों बलिदान भए, 
तब आज शुभ दिन, 
हम देख पाए हैं । 

चारों ओर राम राम, 
भज रहे छोड़ काम, 
विराजेंगे राम लला, 
दीपक जलाए हैं। 

राम जैसा दूजा नहीं, 
सिया सी पवित्र नहीं, 
लक्ष्मण सा भाई नहीं , 
स्वार्थ से नहाए हैं। 

जरूरी है रामराज, 
सुधरेगा ये समाज, 
पापियों के पाप से ये, 
धरा भी कंपाए हैं । 

फिर आए राम राज, 
पूर्ण हो सबके काज, 
राम जैसे बनें सभी, 
अरज लगाए हैं ।

✍️
स्वाति शर्मा
बुलंदशहर

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