मातृभूमि की पुकार
मातृभूमि की पुकार
उठो जवानों, निद्रा तोड़ो,
माँ भारती अब तुम्हें पुकारती है ।
देश की अन्दर और सीमा पर,
अरि का दल हमें ललकारती है ॥
अपना फर्ज निभायें अब तो,
मातृ भूमि का कर्ज चुकायें ।
प्यारी मिट्टी में जन्म लिये तो,
फिर अपने साहस को दिखायें॥
सूर्य - शक्ति के उपासक हैं ।
हम शत्रुओं का संहार करें ।
सीमाओं का विस्तार करें,
पराक्रम दिखा प्रहार करें ॥
प्रेम की भाषा नहीं समझे,
तो तोड़कर अपनी मर्यादा ।
वीर सपूतों को स्मरण कर,
लिख दें फिर हम गौरव गाथा॥
स्वतंत्रता स्वयं अमिट रखें,
माँ,नम नयनों से निहारती है।
भीषण रण में प्राणों का प्रण,
ही पूजा, वन्दना व आरती है ॥
✍️
रवीन्द्र शर्मा (स०अ०)
पूर्व मा० वि० बसवार
क्षेत्र- परतावल
जनपद- महराजगंज, उ०प्र०
देशभति से सराबोर कविता।।
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