पतंग
दूर गगन में दौड़ लगाती,
कभी बादलों में छिप जाती।
नीले काले पीले रंग,
देखो देखो उड़ी पतंग।
इधर गयी कभी उधर गयी,
कभी डोर से उलझ गयी।
उड़ती रहती फर फर फर,
हवा चली जो सर सर सर ।
ढील दिया सरपट उड़ जाती,
फिर वो लड़ने में जुट जाती।
अरे कट गयी उसकी डोर,
लूटो लूटो मच गया शोर।
आसमान की सैर कराये,
डोर बांध कर झट उड़ जाये।
भरती मन में नयी उमंग ,
ऊँची नीची उड़ी पतंग।
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र बावन,
हरदोई।
कभी बादलों में छिप जाती।
नीले काले पीले रंग,
देखो देखो उड़ी पतंग।
इधर गयी कभी उधर गयी,
कभी डोर से उलझ गयी।
उड़ती रहती फर फर फर,
हवा चली जो सर सर सर ।
ढील दिया सरपट उड़ जाती,
फिर वो लड़ने में जुट जाती।
अरे कट गयी उसकी डोर,
लूटो लूटो मच गया शोर।
आसमान की सैर कराये,
डोर बांध कर झट उड़ जाये।
भरती मन में नयी उमंग ,
ऊँची नीची उड़ी पतंग।
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र बावन,
हरदोई।
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