जब कोई अपना होता है
मांग मनवाना बड़ा अच्छा लगता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता,तो कैसा लगता है?
सड़क जाम कर, धरना देना बड़ा अच्छा लगता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता, तो कैसा लगता है?
घेरा डालो, डेरा डालो बड़ा अच्छा लगता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
बात मने या न मने, पर बात मनवाने का ढंग बड़ा अच्छा लगता हैं।
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
हुंई, हुंई करती एम्बुलेंस कानों को फाड़ती बड़ा बुरा लगता,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो,कैसा लगता है?
सांसे गिन-गिन, राहें गिन-गिन जाना दर्द बड़ा देता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
आगे-आगे रास्ता रोके बड़ा अखरता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
धड़कने रूकती, सांसे अटकती टकटकी लगाए मजबूर आँखे देखती तब कैसा लगता है?
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो,कैसा लगता है?
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता,तो कैसा लगता है?
सड़क जाम कर, धरना देना बड़ा अच्छा लगता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता, तो कैसा लगता है?
घेरा डालो, डेरा डालो बड़ा अच्छा लगता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
बात मने या न मने, पर बात मनवाने का ढंग बड़ा अच्छा लगता हैं।
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
हुंई, हुंई करती एम्बुलेंस कानों को फाड़ती बड़ा बुरा लगता,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो,कैसा लगता है?
सांसे गिन-गिन, राहें गिन-गिन जाना दर्द बड़ा देता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
आगे-आगे रास्ता रोके बड़ा अखरता है,
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो, कैसा लगता है?
धड़कने रूकती, सांसे अटकती टकटकी लगाए मजबूर आँखे देखती तब कैसा लगता है?
पर एम्बुलेंस में उस वक़्त जब कोई अपना होता तो,कैसा लगता है?
रचयिता
अब्दुल्लाह खान(स0अ0)
प्रा0वि0बनकटी,
बेलघाट, गोरखपुर।
अब्दुल्लाह खान(स0अ0)
प्रा0वि0बनकटी,
बेलघाट, गोरखपुर।
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