कभी-कभी बच्चा बन जाना
कभी-कभी बच्चा बन जाना
तोतली बोली में बातें करना
बैर-भाव मन मे न लाना
सब जन का प्यारा बन जाना
लुकाछिपी का खेल खेलना
उनमें ही तुम घुल-मिल जाना।
बाल हृदय होता है कोमल
होता नही दंभ और अकड़न
क्षणिक रूठना जल्द मानना
होता मस्तिष्क स्वस्थ और निर्मल
दोहरा चरित्र नही है होता
न ही चिर बैर-भावना
कलि प्रभाव न उन पर होता
ना ही वाग्जाल और माया.
सिद्धान्तों की बलि वेदी पर
अपनों को तुम भूल न जाना
कभी-कभी बच्चा बन जाना
कभी-कभी बच्चा बन जाना.......
तोतली बोली में बातें करना
बैर-भाव मन मे न लाना
सब जन का प्यारा बन जाना
लुकाछिपी का खेल खेलना
उनमें ही तुम घुल-मिल जाना।
बाल हृदय होता है कोमल
होता नही दंभ और अकड़न
क्षणिक रूठना जल्द मानना
होता मस्तिष्क स्वस्थ और निर्मल
दोहरा चरित्र नही है होता
न ही चिर बैर-भावना
कलि प्रभाव न उन पर होता
ना ही वाग्जाल और माया.
सिद्धान्तों की बलि वेदी पर
अपनों को तुम भूल न जाना
कभी-कभी बच्चा बन जाना
कभी-कभी बच्चा बन जाना.......
रचयिता
डॉ0 अनिल कुमार गुप्त,
प्र०अ०, प्रा ०वि० लमती,
बांसगांव, गोरखपुर
प्र०अ०, प्रा ०वि० लमती,
बांसगांव, गोरखपुर
कोई टिप्पणी नहीं