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प्रहरी

मिला है तुमको ये जीवन!
सार्थक इसको क़र डालो
अपनी  शिक्षा की सेवा से
जीवन नन्हें फूलों का
विकसित प्रतिपल कर डालो

आओ ! आकर कदम बढ़ाये
कुछ ऐसा बदलाव लाये
कर दे हर घर को शिक्षित आज
ऐसी ज्ञान की गंगा बहाये ।

    मिला है तुमको ये जीवन... !
कठिन राह है , चलते जाओ
सत्यता का साथ निभाओ
कर्तव्य पथ पे चलते जाओ
दूर कर सारे भ्रम ....


स्वर्णिम सा प्रकाश लेकर
जीवन का आधार लेकर
रोशन जहाँ ये कर डालो
    मिला है तुमको ये जीवन...!


विचरण करो पंछी की तरह
गति हो तेरी हिरणी की तरह
ईर्ष्या का न साथ रहे
कलुष मन का न आभास रहे

वाणी में मधुर संचार रहें
स्वर की नवीन भाषा लेकर
निर्धारित अस्तित्व सारा , कर डालो
   फिर.......

आ जायेगी मलिन मुरझाये कुसुमो में
नयी उमीदों की मृदु मुस्कान
फ़ैल उठेगें गिरे हुए
निराश कोमल पंख , फिर से आज
बन जाओ ऐसे जीवन का
 " प्रहरी तुम आज"
  फिर......

ऐसी सृष्टि , ऐसी दृष्टि
ऐसा प्रतिपल परिवेश मिलें
जो फ़ैल सके चहु ओर
ऐसी शिक्षा का वेश मिले ।
     मिला है तुमको ये जीवन....!

तो पुकारते चलो !!
बढ़े चलो , बढ़े चलो
शंघनाद चिंघाड़ते चलो
पहाड़ को फाड़ते चलो

हिला सके न वेग द्वन्द्व
अडिंग वो शिला बनो
विचलित न प्राण हो कभी
न आत्मा में भय कोई
उस भय को भी ललकार दो ...
मार्गदर्शक ऐसा बनो

नन्हें कुसुमो को सृजित करो ।
   मिले सफलताओ का
   नवदीप्त मंडित आकाश तुम्हें......
"ऐसे हर्षोल्लास के ,
               तुम सार्थक प्रहरी बनो "।

रचयिता
दीप्ति राय, स0 अ0
प्राथमिक विद्यालय रायगंज
खोराबार, गोरखपुर
  खोराबार गोरखपुर

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