नव नेह युवा
प्राणप्रिये परदेश गए तुम खोजत चित्त तुम्हें भटके।
श्वांस चले धड़के जियरा पर प्राण वहीं तुमपे अटके।
कौन निगाह धरे हमपे सब भूल गई लटके झटके।
रोवत रैन कटे ऋतु शीतल नाथ कमी तुम्हरी खटके।
काव्य विधा- मदिरा सवैया छंद
शिल्प- 7 भगण+गुरु
7(211)+ 2
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रजनी घनघोर घिरी सजना ,
नभ श्यामल ऊपर चंद्र चढ़ा।
मन व्याकुल आज अधीर हुआ,
प्रभु ने यह अद्भुत दृश्य गढ़ा।
अनमोल घड़ी यह क्या कहती,
तुमने प्रिय संभवतः न पढ़ा।
ऋतु शीतल है नव नेह युवा,
मिलिये हिय का ज्वर और बढ़ा।
काव्य विधा- दुर्मिल सवैया छंद
शिल्प- 8 सगण, 4 सगण यति।
8(112)
रचनाकार- निर्दोष कान्तेय
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