अर्पण
सुप्त बीज से अंकुर फूटा,
पोषित हो, प्रखरित हुआ,
यौवन छलका, मदमस्त हुआ,
पहले हरित फिर लाल हुआ,
संपूर्णता मिली जब किया,
समाहित स्वयं में कण अपार!!
बह चली अब मंद बयार,
चाह कर भी रोक न सका,
सौंदर्य को अपने समेट न सका,
मिट चला , बिखर चला,
जैसे होता था वह हर बार.. ..
तभी सहसा ये भान हुआ,
क्षणभंगुर है ये काया,
फिर कैसा मोह?
कैसी लालसा ?
क्यों क्या करना,
व्यर्थ का अभिमान,
जन्म-मृत्यु है शाश्वत,
सृष्टि है तो अन्त है निश्चित,
हर साँझ के बाद सहर है होना,
तो क्यूँ नीर की बदली से
भींगें मन का कोना-कोना
त्यागा छद्म अावरण,
परत दर परत किया ,
सत्य का अनावरण
मन की मलिनता किया जो दरकिनार,
असीम ऊर्जा का हो चला संचार,
समझ गया वह मिथ्या
हर्ष और शोक की त्रिज्या,
परिभाषा इस जीवन की,
उपयोगिता अपने जन्म की,
तब गर्व हुअा स्वयं पर,
कि परमार्थ का यह मार्ग,
है कितना अनुपम !!!
कितना सुन्दर!!!
लहरा़या वह, बलखा़या वह,
मुस्काया कर आज वह,
स्वयं को इस धरा पर अर्पण..
स्वयं को इस धरा पर अर्पण!!!!
रचयिता
सारिका रस्तोगी,
सहायक अध्यापिका ,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय,
फुलवरिया, जंगल कौड़िया,
गोरखपुर!!
रामदाना का पौधा जिसके दानों से मीठे लड्डू बनाए जाते हैं जो और जिसका सेवन हम व्रत में करते हैं! प्रतिवर्ष इस समय यह स्वयं को समाहित कर देता हम लोगों के लिए निस्वार्थ!!!
पोषित हो, प्रखरित हुआ,
यौवन छलका, मदमस्त हुआ,
पहले हरित फिर लाल हुआ,
संपूर्णता मिली जब किया,
समाहित स्वयं में कण अपार!!
बह चली अब मंद बयार,
चाह कर भी रोक न सका,
सौंदर्य को अपने समेट न सका,
मिट चला , बिखर चला,
जैसे होता था वह हर बार.. ..
तभी सहसा ये भान हुआ,
क्षणभंगुर है ये काया,
फिर कैसा मोह?
कैसी लालसा ?
क्यों क्या करना,
व्यर्थ का अभिमान,
जन्म-मृत्यु है शाश्वत,
सृष्टि है तो अन्त है निश्चित,
हर साँझ के बाद सहर है होना,
तो क्यूँ नीर की बदली से
भींगें मन का कोना-कोना
त्यागा छद्म अावरण,
परत दर परत किया ,
सत्य का अनावरण
मन की मलिनता किया जो दरकिनार,
असीम ऊर्जा का हो चला संचार,
समझ गया वह मिथ्या
हर्ष और शोक की त्रिज्या,
परिभाषा इस जीवन की,
उपयोगिता अपने जन्म की,
तब गर्व हुअा स्वयं पर,
कि परमार्थ का यह मार्ग,
है कितना अनुपम !!!
कितना सुन्दर!!!
लहरा़या वह, बलखा़या वह,
मुस्काया कर आज वह,
स्वयं को इस धरा पर अर्पण..
स्वयं को इस धरा पर अर्पण!!!!
रचयिता
सारिका रस्तोगी,
सहायक अध्यापिका ,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय,
फुलवरिया, जंगल कौड़िया,
गोरखपुर!!
रामदाना का पौधा जिसके दानों से मीठे लड्डू बनाए जाते हैं जो और जिसका सेवन हम व्रत में करते हैं! प्रतिवर्ष इस समय यह स्वयं को समाहित कर देता हम लोगों के लिए निस्वार्थ!!!
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