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सम्मान समारोह और रस्म-अदायगी का तमाशा

शिक्षा सुधार की बड़ी-बड़ी घोषणाओं और आयोजनों के बीच जमीनी सच्चाई अक्सर रस्म-अदायगी में दबकर रह जाती है। शिक्षक संसाधन केंद्रों में होने वाले ऐसे ही एक गुणवत्ता संवर्द्धन कार्यशाला की विडंबनाओं को यह व्यंग्य कथा तीखे कटाक्ष के साथ उजागर करती है। सम्मान के नाम पर प्रशस्ति पत्र थमाने और समस्याओं को भाषणों में घोल देने की इस परंपरा पर एक तंज भरी नज़र!


"सम्मान समारोह और रस्म-अदायगी का तमाशा"

ब्लॉक शिक्षा संसाधन केंद्र में शिक्षा विभाग की "गुणवत्ता संवर्द्धन कार्यशाला" आयोजित की गई थी। तय समय सुबह 10 बजे था, लेकिन यह तो आयोजकों की औपचारिकता भर थी। कार्यक्रम समय से शुरू होता तो ब्लॉक स्तर का आयोजन कहलाता ही क्यों? मुख्य अतिथि, जो क्षेत्रीय विधायक के रिश्तेदार भी थे, 12 बजे पधारे। उनके स्वागत में बीईओ साहब खुद बाहर तक दौड़े, मानो शिक्षा सुधारने नहीं, किसी जंग में जीतकर लौटे योद्धा का अभिनंदन करने जा रहे हों।  

गेट पर आरती की थाली घुमाई गई, गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ बरसाई गईं, और मालाओं की इतनी परतें चढ़ाई गईं कि मुख्य अतिथि का चेहरा ही ढक गया। बीईओ साहब ने मुस्कराते हुए कहा, "आज शिक्षा जगत के लिए ऐतिहासिक दिन है!" सुनकर कुछ अनुभवी शिक्षकों ने गहरी साँस ली— ये ‘ऐतिहासिक दिन’ वे हर साल कई बार झेल चुके थे।  

मंच सजा-धजा था। बड़ी कुर्सियाँ मुख्य अतिथि और अन्य अफसरों के लिए थीं, और बाकी शिक्षकों के लिए प्लास्टिक की कुर्सियाँ थीं, जिनमें से कुछ पहले ही हिलने-डुलने लगी थीं। कार्यक्रम का विषय ‘शिक्षा की गुणवत्ता सुधार’ था, लेकिन शुरुआत मुख्य अतिथि की महान उपलब्धियों से हुई। बीईओ साहब ने उनकी प्रशंसा में इतने फूल बाँध दिए कि फूलमालाओं की कमी महसूस होने लगी। उन्होंने बताया कि कैसे मुख्य अतिथि ने अपने स्कूल के दिनों में पाँच किलोमीटर पैदल चलकर शिक्षा ग्रहण की थी।


इसके बाद शिक्षकों के सम्मान की बारी आई। उन्हें एक-एक करके मंच पर बुलाया गया, माला पहनाई गई, शॉल ओढ़ाया गया, और एक चमकता हुआ प्रशस्ति पत्र थमा दिया गया। प्रशस्ति पत्रों पर शिक्षकों के ‘अमूल्य योगदान’ का वर्णन था, लेकिन इसमें योगदान क्या था, यह खुद शिक्षकों को भी नहीं पता था। एक शिक्षक ने धीमे स्वर में कहा, "बस नाम बदलते हैं, बाकी सब एक जैसा ही छपता है।" दूसरे ने मुस्कराकर जवाब दिया, "अगली बार इनको बताना पड़ेगा कि कम से कम तारीख तो बदल दिया करें!"

अब मुख्य अतिथि का प्रेरणादायी भाषण शुरू हुआ। उन्होंने बताया कि कैसे शिक्षा व्यक्ति के जीवन को बदल सकती है, और यह भी कि उन्होंने अपनी सफलता के लिए कितनी किताबें पढ़ी हैं— लेकिन उनमें से कोई भी शिक्षा और शिक्षकों के विषय पर नहीं थी!  

कार्यक्रम ढाई घंटे तक खिंच चुका था। शिक्षकों के धैर्य की परीक्षा ली जा रही थी। कुछ शिक्षक मोबाइल स्क्रॉल करने लगे, कुछ दीवार की घड़ी को देखने लगे, और कुछ ऊँघने लगे। तभी एक वरिष्ठ शिक्षक को बोलने के लिए माइक दिया गया। उन्होंने शिक्षा की वास्तविक समस्याओं और शिक्षकों की कठिनाइयों पर बात शुरू ही की थी कि बीईओ साहब ने खाँसकर संकेत दिया— "गुरुजी, अब संक्षेप में!" और फिर उनके पाँच मिनट के भाषण को दो मिनट में समेट दिया गया।  

अंत में धन्यवाद ज्ञापन हुआ, और जलपान की घोषणा की गई। अगले दिन अखबार में हेडलाइन चमकी—  
"ब्लॉक शिक्षा संसाधन केंद्र में भव्य कार्यशाला संपन्न, हुआ शिक्षकों का ऐतिहासिक सम्मान!" 

और इस तरह, शिक्षा सुधार का एक और सुनहरा अध्याय इतिहास में दर्ज हो गया— अगले ऐसे ही तमाशे तक के लिए!


✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी  "दुनाली फतेहपुरी"

शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है। 


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

 

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