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रील्स का चक्कर

मोबाइल और रील्स के जरिए किस प्रकार नई पीढ़ी अपने अमूल्य समय को नष्ट कर रही है उसी पर कुछ पंक्तियाँ.....


रील्स का चक्कर 


हाय रे! यह क्या हो गया 
जमाना अब रील्स का हो गया।
रोज नए-नए रील्स
उतर रहे हैं मोबाइल में।
लाज शर्म छोड़ 
उतर पड़े हैं सब नुमाइश में।
ऐसा क्या मिल रहा है रील्स में 
बच्चे रो रहे हैं इसकी फरमाइश में। 
खो रहा नौनिहालों का भविष्य अंधकार की खाई में।
उठो जागो.......भागो
इस मोहजाल के भंवर से।
अरे! बहुत हुआ अब
छोड़ो यह सब....
अज्ञानी ना बन जाओ।
वक्त बड़ा है कीमती
 यूं उसको ना गवाओं।
संस्कार,मर्यादा अपनाओ 
रील्स बनाने में 
संस्कार भूल ना जाओ।
सही क्या गलत क्या 
कुछ तो चिंतन कर जाओ। 
अश्लीलता भरे ठुमके 
भरे बाजार अब ना लगाओ।
दिखावे वाहवाही में 
खुद को जोकर ना बनाओ।
खुद के ऊपर सारे जग को 
 पागल सा ना हँसाओ।
शिव मंदिर कुंभ तट के 
रील्स ना बनाओ।
रील्स को बना बैठे हो 
जबसे  अपना दोस्त।
छूट गए सब रिश्ते नाते,
अब अकेले कोने में
 बैठे बैठे यूं ना मुस्कुराओ।
कुछ रिश्ते बैठे हैं,
 संग तुम्हारे 
हँसने,बतियाने को, 
उनको ठुकरा रील्स से 
यूं रिश्ता ना निभाओ।
पल दो पल का है जीवन 
कुछ बेहतर कर जाओ।
 नाम तुम्हारा जग में चमके 
जीवन उत्तम बनाओ।
समझ नहीं पा रहे हो 
क्यों?
नादान इतने बन गए
 रील्स की मायानगरी में 
जाने क्यों तुम फंस गए।
हाय रे! ये रील्स का चक्कर 
 घूम रहे हैं सारे बनके घनचक्कर।
समझ नहीं पा रहे अब,
किसी की भी बात 
 भाग रहे मोबाईल लेकर
 बनके अक्कड़ फक्कड़।
हाय रे! ये रील्स का चक्कर।

✍️
दीप्ति राय दीपांजलि 
कंपोजिट विद्यालय रायगंज
खोराबार गोरखपुर

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