क्षमा करना मां
क्षमा करना मां
क्षमा करना मां ......
भीड़ में क्या मिलूं तुमसे ,
एकांत में मिलूंगी ,
शोर में क्या कहूं तुमसे ,
शांति में कहूंगी ।
याद है तुम्हारी गोद ,
अनुभूत है तुम्हारी शीतलता ,
दूधिया ,संगमरमर सा तुम्हारा तन
चांद सितारों, विद्युत वल्लरियों से
चकमक जगमग तुम्हारा आंचल ...
वेद मंत्रों से गुंजित प्रभात ,,
संत प्रवचन ,राम कृष्ण लीला मंचन से
महिमा मंडित सायं काल ....
थी साध की आऊं तुम्हारे पास ,
अद्भुत सौंदर्य और आनंद से परिपूर्ण ,
कल कल छल छल .....
खनकती चूड़ियों सी जलधार ,
खो जाऊं ,सो जाऊं तुम्हारे पास ।
विकल हूं ,हतप्रभ हूं देख तुम्हारा हाल ,
अभी रुकूंगी ,नहीं करूंगी तुम्हें परेशान ,
सबने कर दिया है तुम्हें लहूलुहान ,
सुन सकती हूं तुम्हारी चीत्कार ,
मां ! मुझे है तुम्हारी परवाह ....,
क्षमा करना मां......
नहीं हूं तुम्हारे पास ।
सूनी हुई गोद ,सूनी हो गई मांग
बच्चे हुए अनाथ .....
मां, कैसा है ये उन्माद ?
ये कैसा आह्लाद ?
चूक किसकी किससे करें सवाल ,
कौन दे अकाल मृत्यु का हिसाब ?
करोड़ों के आंकड़े में
खो गई सैकड़ों की आह....।
रचनाकार - प्रसून मिश्रा, जिला बाराबंकी
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