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बेपरवाह सा बचपन

कितना अच्छा है ये बेपरवाह सा बचपन
    कभी चिड़ियों की तरह उड़ना चाहता है
     कभी फूलों की तरह खिलना,
    कभी नदियों की तरह बहना,
    तो कभी सूरज की तरह उगना,
और कभी इतना सरस जैसे सरगम।
कितना अच्छा है ये बेपरवाह सा बचपन 

     कभी आकाश सा फैलना,
     कभी धरती सा रुक जाना,
     कभी पर्वत सा ऊँचा,
     तो कभी बादल सा झुक जाना,
और कभी इतना मधुर जैसे बाँसुरी की धुन
कितना अच्छा है ये बेपरवाह सा बचपन। 

     कभी कलियों सा मुस्कुराना,
     कभी हवा सा गुदगुदाना,
     कभी तारों सा झिलमिलाना,
     तो कभी भंवरों सा गुनगुनाना,
और कभी इतना शीतल जैसे सावन
कितना अच्छा है ये बेपरवाह सा बचपन।

      कभी पापा की जेब पर अधिकार,
      कभी मम्मी की गोद पर,
      कभी झगड़ा कभी अगले ही पल प्यार
   कभी गुल्लक में छिपा सपनों का संसार,
ना कोई फिक्र ना कोई उलझन,
कितना अच्छा है ये बेपरवाह बचपन।

रचयिता
फराह हारून
प्राथमिक विद्यालय मढ़ैया भासी,
वि ख सालारपुर,
जनपद बदायूँ

1 टिप्पणी:

  1. पूर्वाग्रह के दोषों से मुक्त उन्मुक्त बचपन का बेहतरीन चित्रण

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