हर नाम गुरु है
वायु गुरु है, स्वांस गुरु है,
नभ में विकिरित प्रकाश गुरु है।
जीवन तम में किरण गुरु है,
मझधारे पतवार गुरु है।
नेत्र ज्योति है गुरु के कारण,
जिह्वा में आवाज़ गुरु है।
जब कम्पित हो धैर्य मनुज का,
उस क्षण वो विश्वास गुरु है।
अंगुल पोर से अक्षर लिखना,
मन मोहित कर स्वर को चखना,
तुतलाती आवाज गुरु है।
स्नेह भाव आभास गुरु है।
एक एक कर कंकड़ गिनना,
साथ लेखनी हर पल रखना,
जीवन में रँग भरने वाले ,
गणित गुरु, विज्ञान गुरु है।
नभ में चलते फिरते ग्रह थे,
किसके कितने अपने घर थे,
भूगोल गुरु, इतिहास गुरु है।
जीवन का विश्वास गुरु है।
कभी डाँटना, कभी झिड़कना,
मन में श्रद्धावास गुरु है।
गर्दभ गुरु है, स्वान गुरु है।
कोयल की हर तान गुरु है।
वक़्त गुरु है,रक्त गुरु है,
जीवन की पहचान गुरु है।
सुबह गुरु है, शाम गुरु है,
प्रभु का तो हर नाम गुरु है।
गुरु है पावन निर्मल है वो,
वीणा की झंकार गुरु है।
मंदिर के मंत्रों में गुरु है,
मस्जिद का अजान गुरु है।
गुरु ग्रंथ के हर पन्ने में ,
छिपा अलौकिक ज्ञान गुरु है।
मधुकुन्जों का शहद गुरु है,
कल कल ध्वनि उच्चार गुरु है।
गुरु प्रशंसा,साहस गुरु है,
हर ठोकर प्रतिकार गुरु है।
छिपा दंड में प्यार गुरु है,
भाव स्नेह दुलार गुरु है।
"प्रभात" कोटिशः नमन करूँ नित
जीवन का आभास गुरु है।
रचयिता
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी
(स0 अ0) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
नभ में विकिरित प्रकाश गुरु है।
जीवन तम में किरण गुरु है,
मझधारे पतवार गुरु है।
नेत्र ज्योति है गुरु के कारण,
जिह्वा में आवाज़ गुरु है।
जब कम्पित हो धैर्य मनुज का,
उस क्षण वो विश्वास गुरु है।
अंगुल पोर से अक्षर लिखना,
मन मोहित कर स्वर को चखना,
तुतलाती आवाज गुरु है।
स्नेह भाव आभास गुरु है।
एक एक कर कंकड़ गिनना,
साथ लेखनी हर पल रखना,
जीवन में रँग भरने वाले ,
गणित गुरु, विज्ञान गुरु है।
नभ में चलते फिरते ग्रह थे,
किसके कितने अपने घर थे,
भूगोल गुरु, इतिहास गुरु है।
जीवन का विश्वास गुरु है।
कभी डाँटना, कभी झिड़कना,
मन में श्रद्धावास गुरु है।
गर्दभ गुरु है, स्वान गुरु है।
कोयल की हर तान गुरु है।
वक़्त गुरु है,रक्त गुरु है,
जीवन की पहचान गुरु है।
सुबह गुरु है, शाम गुरु है,
प्रभु का तो हर नाम गुरु है।
गुरु है पावन निर्मल है वो,
वीणा की झंकार गुरु है।
मंदिर के मंत्रों में गुरु है,
मस्जिद का अजान गुरु है।
गुरु ग्रंथ के हर पन्ने में ,
छिपा अलौकिक ज्ञान गुरु है।
मधुकुन्जों का शहद गुरु है,
कल कल ध्वनि उच्चार गुरु है।
गुरु प्रशंसा,साहस गुरु है,
हर ठोकर प्रतिकार गुरु है।
छिपा दंड में प्यार गुरु है,
भाव स्नेह दुलार गुरु है।
"प्रभात" कोटिशः नमन करूँ नित
जीवन का आभास गुरु है।
रचयिता
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी
(स0 अ0) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
(9795524218)
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