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बच्चों के ये कोमल मन


बच्चों के ये कोमल मन
ना मुरझायें, ये रहे जतन

रोज पढ़ाएं, रोज लिखाएं
हँसते गाते सब सिखलायें
दूर करके सब दुःख के काँटे
खिला दें हम इनका चमन
....ना मुरझायें, ये रहे जतन

कभी भाषा और कभी विज्ञान
या फिर हो व्यक्तित्व महान
सभी विषय का हो संज्ञान
लगा दें हम तन - मन- धन
....ना मुरझायें, ये रहे जतन

खेल-खेल में, गुणा गणित में
कला-चित्र में या अपठित में
गीत - कहानी से प्रेरित कर
देश को दें अनमोल रतन
....ना मुरझायें, ये रहे जतन

बनें रहें ये सदा मुखर
चिंतन शक्ति बने प्रखर
छू जाएँ उन्नति के शिखर
पर याद रखें अपना बचपन
....ना मुरझायें, ये रहे जतन

इनके बचपन की करें रक्षा
ना भार लगे इनको शिक्षा
ये पढ़ें - बढ़ें प्रतिपल इच्छा
अपने उपवन के ये नन्हें सुमन
....ना मुरझायें, ये रहे जतन
    बच्चों के ये कोमल मन

रचयिता
प्रीति श्रीवास्तव
उ० प्रा० वि० रन्नो
वि० क्षे० बक्शा
जौनपुर

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